मानव हीनता की पराकाष्ठा है तेलंगाना का मामला

The Telangana case is the height of human inferiority

सुनील कुमार महला

हाल ही में तेलंगाना के हैदराबाद में दिल दहला देने वाला एक मामला सामने आया है‌। दरअसल, रंगारेड्डी जिले के मीरपेट में रहने वाले पूर्व सैनिक गुरुमूर्ति ने अपनी पत्नी वेंकट माधवी की हत्या की और उसकी लाश के टुकड़े करके प्रेशर कुकर में उबाल दिया। इतना ही नहीं पूर्व सैनिक ने अपनी पत्नी के बॉडी पार्ट्स को जिल्लेलागुडा के चंदन झील इलाके में भी फेंका। कहना ग़लत नहीं होगा कि यह मानव हीनता की पराकाष्ठा है। पूर्व सैनिक गुरुमूर्ति द्वारा अपनी पत्नी माधवी की बर्बर तरीके से की गई हत्या हर किसी को स्तब्ध करने और मानवता को बहुत ही शर्मसार करने वाली घटना है। यह दर्शाता है कि आज कहीं न कहीं समाज के भीतर खतरनाक हिंसा की प्रवृत्ति का जन्म होता चला जा रहा है और मानव, मानव के प्रति बहुत ही ज्यादा संवेदनहीन हो गया है। कहना ग़लत नहीं होगा कि ऐसी खतरनाक प्रवृत्ति आदमी की मानसिक विकृति को भी उजागर करती है। आज हमारे देश में ही नहीं अपितु पूरी दुनिया में हिंसा, युद्ध, अत्याचार एवं आक्रामकता का बोलबाला बढ़ता चला जा रहा है। समाज में हिंसा बढ़ना, समाज व देश के लिए ख़तरनाक संकेत है। सच तो यह है कि आज हिंसा के कारण लोग लगातार सामाजिक अलगाव एवं अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं। हिंसा व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर डालती है।आज समाज में बढ़ती हिंसक मानसिकता एवं परिस्थितियों के बीच न जिन्दगी सुरक्षित रही है, और न ही इंसान का स्वास्थ्य ही। जीवन मूल्यों में गिरावट का दौर जो आज चल रहा है, शायद पहले कभी न था। हिंसा से नहीं, अपितु अहिंसा से ही मानव समाज और देश का भला हो सकता है। अहिंसा का भारतीय संस्कृति में बहुत ही महत्वपूर्ण और अहम् स्थान रहा है।करुणा, दया, जियो और जीने दो, अहिंसा परमो धर्म: आदि भारतीय संस्कृति का गहना हैं लेकिन यह बहुत ही दुखद है कि आज हमारा समाज लगातार हिंसा और हिंसक प्रवृत्तियों की ओर घर कर रहा है। कहना ग़लत नहीं होगा कि अहिंसा मानव जाति के पास सबसे बड़ी ताकत है। महात्मा गांधी ने कहा था कि यह मनुष्य का सबसे शक्तिशाली हथियार है।बदला लेने का कोई भी तरीका हिंसा है और यह करने वाले के लिए दुख लेकर आता है। अहिंसा हर परिस्थिति में खुद और दूसरों के प्रति हानिरहित रहने का व्यक्तिगत अभ्यास है।हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम सभी ईश्वर की रचनाएँ हैं जो प्रेम का सागर है।सच तो यह है मनुष्य के जीवित रहने के लिए जितनी प्राण-वायु आवश्यक है, उतनी ही आवश्यक उसके जीवन के लिए अहिंसा। कहना ग़लत नहीं होगा कि अहिंसा मानव-जीवन का अधिष्ठान है, जिसके जीवन में अहिंसा नहीं, वह जीवन एक प्रकार से निरर्थक है। संक्षेप में कहें तो अहिंसा सत्य का प्राण है, स्वर्ग का द्वार है, जगत् की माता है, आनन्द का अजस्र स्रोत है, उत्तम गति है, शाश्वत श्री है और मानवमात्र के लिए परम धर्म है। बहरहाल, तेलंगाना में जो वारदात/घटना हुई है, वह मानवजाति को शर्मशार करती है। यह वारदात तीन साल पहले दिल्ली में श्रद्धा की उसके कथित प्रेमी द्वारा की गई हत्या की भी याद दिलाती है। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि श्रद्धा वाकर एक 27 वर्षीय भारतीय महिला थी, जिसकी 18 मई 2022 को दिल्ली में उसके 28 वर्षीय प्रेमी और लिव-इन पार्टनर ने हत्या कर दी थी।उसने कथित तौर पर श्रद्धा का गला घोंट दिया था और उसके शरीर को 35 टुकड़ों में काटकर दक्षिण दिल्ली के महरौली में अपने निवास पर लगभग तीन सप्ताह तक 300 लीटर के फ्रिज में रखा और कई दिनों तक महानगर में फेंक दिया था। हाल फिलहाल,यह सोचकर ही हर किसी के रोंगटे खड़े हो जाते हैं कि गुरुमूर्ति ने कैसे किसी जघन्य अपराधी की तरह अपनी पत्नी के शव को टुकड़ों में काटकर कुकर में उबाला था और फिर झील में फेंक आया। कहना ग़लत नहीं होगा कि यह कोई साधारण अपराध नहीं है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज हमारा समाज लगातार स्वार्थ प्रवृत्ति की ओर अग्रसर हो रहा है, जहां रिश्ते-नातों को कोई महत्व नहीं है। आज हर किसी को धन से आसक्ति हो गई है,आज इंसान को धन-सम्पत्ति से विरक्ति लेने की जरूरत है। ज़रूरत इस बात की है कि इन्सान, इंसान को इन्सान समझे।शिक्षा इसमें सहयोग कर सकती है।सच तो यह है कि आज समाज को शिक्षित बनाने की जरूरत है। तेलंगाना में जो हुआ है वह
हमारे समाज में बढ़ती असंवेदनशीलता, रिश्तों में विश्वास की कमी और मानसिक अस्थिरता को ही दर्शाता है। आज आदमी की दूषित सोच ने आदमी को असंवेदनशील बना दिया है। दूषित सोच के लिए भी कहीं न कहीं हमारा समाज ही जिम्मेदार है, क्यों कि आज हम हमारे संस्कारों, नैतिक मूल्यों, आदर्शों, हमारे सामाजिक प्रतिमानों से लगातार दूर होते चले जा रहे हैं। हम आपा-धापी भरी इस जिंदगी में पदार्थ में रमे हुए हैं। पदार्थ ही हमारे लिए आज सबकुछ हो गया है। आज हम रिश्तों का महत्व भूल रहे हैं।आज जरूरत इस बात की है कि हम अपने निजी और सामूहिक स्तर पर अपने रिश्तों और भावनाओं को संभालने के तरीकों पर पुनर्विचार करें। आज संवेदनाएं गुम हो गई हैं।भारतीय समाज में तो हमेशा हमेशा से‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना का महत्त्व रहा है, लेकिन आज पाश्चात्य संस्कृति का हम पर प्रभाव है और मानवीय रिश्ते कई रूपों में छिन्न-भिन्न हो रहे हैं।आज आदमी केवल अपने स्वार्थ की ही बात करता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि उसे दूसरों के हित की कोई चिंता नहीं है।सच तो यह है कि आज सामाजिक सरोकारों को जीवंत रखने के लिए समाज में संवेदनशीलता बहुत ही जरूरी व आवश्यक है, क्योंकि पारस्परिक संवेदनाएं ही समाज में सामाजिक सौहार्द, मेलजोल की भावना, सहयोग आदि कायम रखती है। इसलिए एक दूसरे के सुख-दु:ख में व सामाजिक कार्यक्रमों में यथासंभव भागीदारी व सहयोग अत्यावश्यक है। यह ठीक है कि हाल फिलहाल हुई वारदात पति-पत्नी के बीच संबंध एक निजी मामला है, लेकिन सवाल यह है कि आज आपसी संबंध यांत्रिक से क्यों हो गए हैं ?आज आए दिन हत्याओं की खबरें, हिंसा, अत्याचार, आगजनी, लूट की वारदातें समाज की संवेदनहीन प्रकृति को ही तो परिलक्षित करती है। सच तो यह है कि आज बढ़ते भौतिकवाद/पदार्थ युग व स्वार्थी प्रवृत्ति ने हमारे रिश्तों को शर्मसार कर दिया है। यह बहुत ही दुखद है कि आज भाई-भाई की हत्या कर रहा है, बेटा मां- बाप को मारने पर तुला है। मां-बाप को घर से निकाल दिया जाता है, अत्याचार किया जाता है। आज लालच, लोभ, स्वार्थ और दिखावे की प्रवृत्ति ने हमारे समाज में लगातार संवेदनहीनता को बढ़ावा दिया है। आदमी की महत्वाकांक्षाएं बढ़ गई हैं।किसी के पास दूसरे के लिए जरा सा भी वक्त नहीं रहा है। लोग इतने संवेदनहीन हो गए हैं कि वे दूसरे की तकलीफ में भी अपना सुख व फायदा ढूंढ़ लेते हैं। वास्तव में, इन सब पर समाज को आज घोर आत्मचिंतन करने की जरूरत है। घरेलू हिंसा और पारिवारिक तनाव के बढ़ते मामलों के बीच, हमें यह समझने की जरूरत है कि कानून अपनी जगह ठीक है लेकिन यह भी एक कटु सत्य है कि इनका समाधान केवल कड़े कानूनों से ही नहीं हो सकता है। इसे रोकने के लिए ज़रूरत इस बात की सुसंगत नीतियां सुनिश्चित करने के क्रम में कदम उठाए जाएं। शिक्षा का अधिकाधिक प्रसार किया जाए। हम अपने संस्कारों की नींव को मजबूत करें। घरेलू हिंसा को रोकने के लिए समाज, परिवार में बेहतर वातावरण बनाने की जरूरत है। अंत में यही कहूंगा यदि हम सही मायनों में ‘महिलाओं के विरुद्ध हिंसा से मुक्त भारत’ बनाना चाहते हैं, तो हमें यह चाहिए कि हम एक राष्ट्र के रूप में सामूहिक तौर पर इस विषय पर चर्चा करें। शिक्षा तो आवश्यक है ही।वास्तव में, घरेलू हिंसा रोकथाम के लिए एक राष्ट्रव्यापी सामाजिक अभियान की शुरुआत की जा सकती है।

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