शब्दों की दुनिया में दृश्यों का दबाव

The pressure of visuals in the world of words

विजय गर्ग

इंटरनेट समाज के लिए एक चमत्कार रहा है। इसने जमीनी स्तर पर कई सकारात्मक बदलाव देखे हैं। कैमरे वाले मोबाइल फोन के माध्यम से इंटरनेट की उपलब्धता ने लोगों के लिए संभावनाओं के कई दरवाजे खोल दिए। डिजिटल दुनिया जहां समाज को गई, वहीं इसने कई जटिलताओं को आसान बना दिया। अनुसार, मार्च 2024 तक भारत में 6.4 करोड़ 2.27 गीगाबाइट प्रति कल्पना लोक में ले पीआइबी की एक रपट इंटरनेट उपयोगकर्ता हैं माह है। आबादी का 5.69 फीसद दूरसंचार घनत्व है। परिणामस्वरूप, देश सोशल मीडिया का उदय और प्रभाव एक नई ऊंचाई पर पहुंच गया इसलिए, सोशल मीडिया में बड़े पैमाने पर भागीदारी अभूतपूर्व रूप से बढ़ी है। इंटरनेट, कैमरे और सोशल मीडिया का संयोजन मानव जीवन में एक आवश्यक वस्तु बन गया है। शुरुआत में सोशल मीडिया पर दिखने का चलन शब्दों के माध्यम से था, खासकर तब, जब लोग फेसबुक और ट्विटर पर अपने विचार लिखते थे, लेकिन अब इसे वीडियो में बदला जा रहा है। फेसबुक और इंस्टाग्राम के माध्यम से सोशल मीडिया के मेटा समूह के मंच पर इसे ‘रील’ कहा जाता है।

आम आदमी की सामान्य प्रवृत्ति खुद को लोगों के सामने पेश करने की होती है। इसलिए सोशल मीडिया पर रौल, शार्ट्स, फ्रैंक और सेल्फी आदि के रूप में पेश किया रहा है, जिसका मुख्य लक्ष्य इंटरनेट की दुनिया में ‘वायरल’ होना या सुर्खियों में आना है, ताकि समाज में मशहूर हुआ सके। निस्संदेह, रचन रचनात्मकता के कई ता के कई रूपों को सार्वजनिक स्थान मिल रहा है और इसके कई पहलू, जैसे नृत्य, गायन, अभिनय, • संगीत प्रस्तुति, खाना बनाना, पेंटिंग, गेमिंग, जादू, गणितीय खेल, चुटकुले, कविताएं, राजनीतिक व्यंग्य, स्टंट, बाइक चलाना, लोक कला, पालतू जानवरों से जुड़ी कलाएं, बच्चों की शरारतें और इसी तरह की अन्य गतिविधियां बिना किसी टीवी चैनल के, समाज तक पहुंच रही हैं। नए कलाकार, वक्ता, शिक्षक, पत्रकार, ब्लागर, यूट्यूबर और ‘फ्रैंक स्टार’ इस माध्यम से प्रसिद्धि पा हैं। हजारों वीडियो से करोड़ों रुपए की कमाई हो रही है। इस पूरी प्रक्रिया के माध्यम से एक नया रोजगार भी उभर रहा है, जिसे भारतीय अर्थव्यवस्था लिए सहायक माना जा सकता है।

समाज में सोशल मीडिया ‘इन्फ्लुएंसर’ के रूप में एक नया सम्मानजनक दर्जा सामने आया है। अगर सोशल मीडिया न होता तो उनमें से कई लोग दूसरों का ध्यान आकर्षित नहीं कर पाते। हालांकि, यह भी “है कि समाज केवल वायरल होने की मंशा से उभर रही हैं। इसमें एक ‘रोल’ बना कर उसका प्रचार करके सबसे अधिक लोगों तक पहुंच बनाने की मंशा सर्वोपरि है। अधिक से अधिक दर्शक और प्रशंसक पाने के लिए उनमें अंधी प्रतिस्पर्धा चल रही है, है, क्योंकि उसी के अनुसार अधिक से अधिक कमाई में वृद्धि भी हो रही है। कारण, समाज में कई ऐसे कार्य हो रहे हैं, जिनकी नागरिक मूल्यों को देखते हुए अनुमति नहीं दी जा सकती है। कई ‘फ्रैंक स्टार’ आम आदमी को चिढ़ाते हैं, और इस तरह नागरिकों की निजता से समझौता होता है।

सेल्फी लेने और स्टंट वीडियो बनाने के कारण दुर्घटनाएं हो रही हैं। पहाड़ पर चढ़ना, पानी में गोता लगाना और ऊंचाई से कूद कर स्टंट वीडियो बनाने की प्रवृत्ति खतरनाक है। इसके परिणामस्वरूप लोगों को गंभीर चोटें आई हैं। यहां तक कि मौत भी हो रही है।

समाज में सहज मानवीय व्यवहार में यह कोई सामान्य घटना नहीं है, जहां वेब- सामग्री निर्माता अनैतिक, धोखाधड़ी वाले तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं, वहीं दर्शक भी इस तरह की नकली और अनुत्पादक सामग्री देख कर धोखा खा रहे हैं और समय भी बर्बाद कर रहे हैं। डिजिटल जागरूकता की कमी और भाषाई बाधाओं के कारण साइबर अपराधी लोगों को लूट रहे हैं। डिजिटल कंपनियों द्वारा निर्दोष उपयोगकर्ताओं से उनकी ‘सूचित सहमति’ के बिना व्यक्तिगत डेटा चुरा कर दुरुपयोग किया जा रहा है।

सोशल मीडिया खबरों के उपभोग का पसंदीदा तरीका बन गया है। ‘फिक्की’ द्वारा दैनिक समाचार उपभोग पर किए गए एक अध्ययन के अनुसार, डिजिटल मीडिया 79 फीसद, टेलीविजन समाचार चैनल 61 फीसद और मुद्रित समाचार पत्र पत्र 57 फीसद के साथ सर्वोच्च स्थान पर हैं। कोई भी इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि डिजिटल मीडिया की प्रवृत्ति बहुत अस्थिर है और संपादकीय भूमिका न्यूनतम इसलिए, लोगों को प्रामाणिक समाचार प्रदान करके उनकी सेवा करने की भावना से हर स्तर पर समझौता प्रदान किया जा रहा है, जहां प्राथमिक उद्देश्य अधिकतम दर्शक प्राप्त करना है।

इसलिए पत्रकारिता का मुख्य उद्देश्य, जो समाचार की गुणवत्ता की कीमत और समझौतावादी इरादों के साथ टेलीविजन युग में उच्च ‘टीआरपी’ हासिल करके मूल लाभ की ओर बढ़ना शुरू हुआ था, वह डिजिटल मीडिया में चरम पर पहुंच गया है।
नतीजतन, नए मीडिया में पत्रकारिता की सहज भाषा के साथ एक विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण । और पारदर्शी समाचार की उपलब्धता न्यूनतम होती जा रही है। सामग्री का शीर्षक और वीडियो के ‘थंबनेल’ मीडिया की नैतिकता सनसनी पैदा करने के लिए डिजाइन किए जा रहे हैं। अध्ययन डिजिटल मीडिया में सत्ता और धन के केंद्रीकरण को भी दर्शाते हैं।

नए मीडिया विज्ञापन ने कुल विज्ञापन 152 फीसद योगदान दिया और 2023 में इसमें कुल विज्ञा न विज्ञापन वृद्धि का 105 फीसद हिस्सा शामिल था। यह तीव्र वृद्धि पारंपरिक मीडिया के सभी विज्ञापन लाभों को दबाने के लिए तैयार है। इसी तरह, यदि डिजिटल दुनिया को एक खुला संसाधन मानें तो उस स्थिति में मनोरंजन शैलियों में रील, शार्ट्स और पर्याप्त लंबाई के वीडियो जरिए हिंदी और भोजपुरी संयुक्त रूप से हावी हैं, जहां ये 70 फीसद की हिस्सेदारी कर रहे हैं, पंजाबी आठ फीसद, तमिल पांच फीसद, तेलुगु पांच फीसद, कन्नड़ तीन फीसद, मराठी दो फीसद, मलयालम एक फीसद और हरियाणवी का भाग भी एक फीसद है। हो सकता है कि लाभ में इतना अंतर अधिक आबादी और संबंधित भाषाओं में पर्याप्त वीडियो सामग्री की उपलब्धता के कारण हो है, लेकिन एक बार कोई प्रभुत्व स्थापित हो जाने के बाद, वैकल्पिक शक्ति के लिए उठना हमेशा तरह अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

ये वीडियो बिना किसी संपादकीय हस्तक्षेप के उपलब्ध हैं। ‘स्टैटिस्टा ‘ के एक अध्ययन के अनुसार भारत में एक व्यक्ति औसतन प्रतिदिन छह घंटे से ज्यादा आनलाइन समय बिताता है। फोन के इस अत्यधिक उपयोग के कारण कई तरह की मानसिक बीमारियां हो रही हैं, जिनमें आंख कमजोर होना और सिर दर्द आदि शामिल हैं। भले ही सब कुछ अप्रासंगिक हो, लेकिन हमारी दिनचर्या में छह घंटे का समय भी बहुत मायने रखता है। समाज में पेशेवरों पर प्रतिदिन काम के घंटे बढ़ाने का लगातार दबाव है और इस आधार पर यह आंकड़ा बहुत ज्यादा है। डिजिटल उपकरण के अत्यधिक उपयोग को रोकने और हमारी अनुत्पादक डिजिटल गतिविधियों को कम करने के लिए कोई हस्तक्षेप या संतुलन नहीं है, ऐसे में जागरूकता ही लोगों को डिजिटल रूप से जिम्मेदार बना सकती है।

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