नकली/मिलावटी दूध का खेल: अर्थव्यवस्था और स्वास्थ्य को चंपत !

The game of fake/adulterated milk: A threat to economy and health!

सुनील कुमार महला

दूध सदियों सदियों से हमारी सनातन भारतीय संस्कृति और खान-पान का बहुत ही अहम् हिस्सा रहा है। वास्तव में दूध शुद्धता और पोषण का प्रतीक रहा है। इसीलिए हमारी सनातन संस्कृति में दूध को ‘अमृत’ की संज्ञा दी गई है।एक उपलब्ध जानकारी के अनुसार दूध उत्पादन के मामले में भारत दुनिया का नंबर-1 देश है और वैश्विक दूध उत्पादन में भारत का योगदान 24.64 प्रतिशत है। पीआईबी पर उपलब्ध एक जानकारी के अनुसार वर्ष 2022-23 के दौरान देश में कुल दूध उत्पादन 230.58 मिलियन टन था और इसी अवधि में प्रति व्यक्ति उपलब्धता 459 ग्राम प्रति दिन थी।एक अन्य उपलब्ध जानकारी के अनुसार भारत का दूध उत्पादन वर्ष 2023-24 में 4 प्रतिशत बढ़कर 239.3 मिलियन टन हो गया है, लेकिन बावजूद इन सबके आज यह एक बहुत बड़ी विडंबना ही है कि दूध में मिलावट है। देश में आए दिन नकली दूध मिलने के अनेक मामले सामने आ रहें हैं। आज अधिक कमाई के लालच में दूध में मिलावट कर मानव स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। पाठकों को बताता चलूं कि लगभग सात-आठ साल पहले मीडिया के हवाले से यह खबरें आईं थीं कि देश में बिकने वाला 67.7 फीसदी दूध मिलावटी है।इसके पीछे उस समय तर्क यह दिया गया था कि देश में दूध का उत्पादन 14 करोड़ और खपत 64 करोड़ लीटर है। पिछले ही साल यानी कि वर्ष 2024 में एक प्रतिष्ठित हिंदी दैनिक के हवाले से यह खबरें आईं थीं कि देश में नकली दूध बनाने का कारोबार चल रहा है।उस समय दैनिक ने जानकारी दी थी कि मिलावटी दूध के सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश, केरल और तमिलनाडु में सामने आए हैं। वास्तव में सच तो यह है कि उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक कई राज्य ऐसे हैं जहां नकली दूध बनाने का कारोबार और बेचने का कारोबार धड़ल्ले से हो रहा है। आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2023-24 में यूपी में 16 हजार से ज्यादा दूध के सैंपल पॉजिटिव पाए गए थे।इसी तरह से तमिलनाडु में 2200 से ज्यादा मामले जबकि केरल में 1300 सैंपल पॉजिटिव पाए गए थे। इतना ही नहीं, बिहार, हरियाणा, महाराष्ट्र, राजस्थान, पंजाब और मध्यप्रदेश में भी लगातार मिलावटी और नकली दूध के मामले पकड़े गए। गौरतलब है कि देश भर में प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता के मामले में पंजाब सबसे आगे है, लेकिन इसके बावजूद राज्य में नकली दूध की समस्या आज भी उतनी ही गंभीर बनी हुई है। यहां पाठकों को बताता चलूं कि देश के सिर्फ पांच राज्य, जिनमें क्रमशः राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात और आंध्र प्रदेश शामिल हैं, 52 फीसदी दूध का उत्पादन करते हैं। राजस्थान दूध उत्पादन के मामले में काफी आगे है, क्यों कि यहां पर अधिक संख्या में पशुपालन किया जाता है। नाबार्ड के वर्ष 2023 के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार देश में कुल उत्पादित होने वाले दूध उत्पादन में से राजस्थान 15.05 फीसदी का उत्पादन करता है, जबकि दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश है, जहां कुल 14.93 फीसदी दूध का उत्पादन होता है। तीसरे स्थान पर मध्यप्रदेश है, जहां 8.06 फीसदी दूध का उत्पादन होता है। इसके बाद चौथे स्थान पर गुजरात है, जहां 7.56 फीसदी दूध का उत्पादन होता है। पांचवें स्थान पर आंध्र प्रदेश है, जहां 6.97 फीसदी दूध का उत्पादन किया जाता है। बहरहाल, क्या यह बहुत ही गंभीर और संवेदनशील बात नहीं है कि भारत में दूध का जितना उत्‍पादन नहीं होता, उससे ज्‍यादा दूध की खपत होती है ? वास्तव में एक कटु सत्य तो यह है कि आज हम दूध में मिलावट के दौर से नकली दूध के दौर में प्रवेश कर चुके हैं। आज दूध में यूरिया, डिटर्जेंट और विभिन्न खतरनाक रासायनिक पदार्थों की मिलावट की जा रही है। इतना ही नहीं,नकली दूध बनाने में कास्टिक सोडा, सफेद पेंट, हाईड्रोपेरॉक्साइड, वनस्पति तेल, फर्टिलाइजर जैसे घातक पदार्थों का इस्तेमाल होता है। ये सभी पदार्थ मानवीय स्वास्थ्य के लिए घातक हैं और कैंसर जैसे कई घातक रोगों के कारक हैं।आज देश में मिल रहे दूध व दूध से जुड़े 80 से 90 प्रतिशत उत्पाद मिलावटी हैं। पाठकों को बताता चलूं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है कि है कि अगर भारत के दुग्ध उत्पादों की जांच नहीं की गई तो इस वर्ष यानी कि 2025 तक 87 प्रतिशत भारतीय घातक बीमारियों जैसे कैंसर आदि के शिकार हो सकते हैं। विज्ञान एवं तकनीकी मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार 89.2 प्रतिशत दुग्ध उत्पादों में किसी न किसी तरह की मिलावट पाई है। बहरहाल, पाठकों को बताता चलूं कि साल 2019 में, देश में कुल दुधारू पशुओं की संख्या 125.34 मिलियन थी। इनमें भी गायों की संख्या 14 करोड़ 51.2 लाख और भैंसों की संख्या 109.85 मिलियन थी, लेकिन आज एक ओर जहां भैंसों की संख्या में कमी आई है, वहीं दूसरी ओर दूध उत्पादन में इजाफा हुआ है। आज आबादी(मानव) बढ़ रही है, पशुओं की संख्या लगातार घट रही है और दूध उत्पादन बढ़ रहा है, यह हर किसी को विस्मय में ही डालता है।पशुधन(भैंसों) की संख्या में कमी के बावजूद दूध उत्पादन में वृद्धि क्या आश्चर्यजनक बात नहीं है ? उल्लेखनीय है कि भारत जैसे देश में दूध का प्राथमिक स्रोत भैंसें और गायें ही हैं, लेकिन बीते कुछ दशकों में ग्रामीण क्षेत्रों में भी पशु पालने का रुझान लगभग आधा रह गया है। शहरों में तो पशु आज के समय कोई पालना ही नहीं चाहते हैं। दरअसल,इसके पीछे कारण स्पष्ट हैं। मसलन, आज हर चीज़ में महंगाई बढ़ी है, बढ़ती आबादी के बीच शहरों ही नहीं ग्रामीण परिवेश में भी आज के समय कोई पशुपालन नहीं करना चाहते। पशुओं के साथ चारे की कीमतों में भी अभूतपूर्व इजाफा हुआ है। पशुओं के लिए इलाज सुविधाओं का अभाव है। पशुपालन के लिए कम आय भी आम आदमी का पशुपालन से मुंह मोड़ रहा है।आधुनिकता और बदलती जीवनशैली का प्रभाव पशुपालन पर कहीं न कहीं पड़ा है और पशुपालन के प्रति पहले की तुलना में रूझान काफी घटा है। आज आये दिन हम मीडिया की सुर्खियों में यह पढ़ते सुनते हैं कि फलां-फलां स्थान पर नकली व मिलावटी दूध और उससे बने उत्पादों की भारी मात्रा में बरामदगी हुई। आज दूध व दूध से बने पदार्थों/उत्पादों के नमूने फेल हो रहे हैं।सच तो यह है कि ऐसी खबरें (मिलावटी व नकली दूध की खबरें) दूध उत्पादन में वृद्धि पर कहीं न कहीं सवालिया निशान लगातीं हैं।आज पशु कहीं पर दिखाई नहीं देते, फिर भी दूध, पनीर, दही तथा दूध से बने अनेक उत्पाद बाजारों, माल्स आदि में धड़ल्ले से उपलब्ध हैं, जो कि काफी चिंताजनक है। बहरहाल, यह बात ठीक है कि पशुपालन, भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है और भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि के बाद अहम क्षेत्र है, लेकिन सच तो यह है कि आज पशुपालन के प्रति पहले सी रूचि नहीं रही है,जिसके कारणों के बारे में इस आलेख में आप पाठकों को पहले ही अवगत कराया जा चुका है। आज से पच्चीस तीस साल पहले विशेषकर ग्रामीण परिवेश में पशुपालन लोगों का शौक था, दूध देने वाले पशु घर-परिवार , आंगन की शोभा बढ़ाते थे और उन्हें परिवार का अहम् और महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता था। आज पहले सी बात नहीं रही, हम आधुनिक हो चलें हैं।आज हमें सबकुछ पैकिंग में चाहिए,दूध भी आज पैकिंग की वस्तु हो चली है, हमारे पास पशुपालन का समय नहीं बचा है, जैसा कि आधुनिकता की दौड़ में हम अंधे हो चुके हैं। न हमें अपने स्वास्थ्य का ख्याल रहा है, और न ही देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहलाने वाले पशुपालन का ही। आज दूध व्यवसाय तो बना है,दूध घरेलू इस्तेमाल से व्यवसाय तक आया है, वर्गीज कुरियन हमारे देश के ‘मिल्कमैन’ कहे जाते हैं।उनके नेतृत्व में भारत दूध उत्पादन में आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर हुआ, देश में पहले की भांति(प्राचीनकाल की भांति) दूध की नदियां बहने लगीं, लेकिन आज समय के साथ दूध के व्यवसाय में मिलावटी व नकली दूध का बोलबाला हो चुका है,जो हमारे स्वास्थ्य के लिहाज से ठीक नहीं ठहराया जा सकता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज जरूरत इस बात की है कि सरकारें व भारतीय किसान न केवल दूध उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान दें, बल्कि पशुपालन को सुदृढ़ करें और पशुओं के प्रति सम्मान की संस्कृति को पुर्नजीवित करें, क्यों कि हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है और पशुपालन हमारी रीढ़ है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि खेती के साथ पशुपालन हमारी आजीविका का एक प्रमुख जरिया है।नकली और मिलावटी दूध आज हमारे देश, हमारे समाज के लिए एक बड़ी चुनौती है।यह हमारे देश की अर्थव्यवस्था पर भी एक कड़ा प्रहार है।

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