
प्रो. नीलम महाजन सिंह
विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका, संविधान के स्वतंत्र स्तंभ हैं। ये एक दूसरे के पूरक हो सकते हैं, परंतु जिस प्रकार की अभद्र टिप्पणियां निशिकांत दुबे, लोक सभा सदस्य ने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना पर दी हैं, उसकी जितनी भर्त्सना की जाए, वह कम है। इससे राजनीतिक दलों में जिस प्रकार का हंगामा मचा है, वह बीजेपी के लिए मुसीबत बन गया है। उधर भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने निशिकांत दुबे व दिनेश शर्मा के बयानों से पार्टी को अलग कर लिया है। क्या कहा है, इन बड़बोले सांसदों नें? निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट पर बयान दिया, कि जस्टिस संजीव खन्ना, जो वक्फ कानून: 2025 पर सुनवाई कर रहें हैं, कि वे मुस्लिम समुदाय के साथ पक्षपात कर रहे हैं, जिससे भारत में धर्म के आधार पर गृह युद्ध होने की सम्भावना है। इसके बाद राजनीतिक मैदान में हंगामा मचा हुआ है। पर क्या उन्होंनें दुबे के विरुद्ध कोई कार्यवाई की है? नहीं। झारखंड के गोड्डा से चार बार, बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे के बयान, “देश में धार्मिक युद्ध भड़काने के लिए सुप्रीम कोर्ट ज़िम्मेदार है”; अत्याधिक हानिकारक हैं। इस पर जस्टिस संजीव खन्ना तो कुछ नहीं बोले, परंतु मई 2025, में नए सर्वोच्च न्याधीश बनने वाले, जस्टिस बी.आर. गावई ने, सर्वोच्च न्यायालय पर बेबुनियाद टिप्पणियों पर खेद जताया है। दूसरी ओर बीजेपी के राज्यसभा सांसद दिनेश शर्मा ने कहा कि भारत के संविधान के अनुसार, कोई भी लोकसभा, राज्यसभा को निर्देशित नहीं कर सकता है। ये बयान भी सर्वोच्च न्यायालय पर केंद्रित हैं, जिसमें जस्टिस संजीव खन्ना की खण्डपीठ ने तमिलनाडु गवर्नर रवि पर टिप्पणी करते हुए कहा कि राज्य सरकारों द्वारा विधानसभा में पारित बिलों को अनंत समय तक रोका नहीं जा सकता।
यह भी कहा गया कि यदि ये बिल महामहिम राष्ट्रपति के संज्ञान में आते हैं तो उस पर 90 दिनों, यानी तीन महिनों में निर्णय लेना अवश्यक है।.इस पर उपराष्ट्रपती जगदीप धनकढ़ ने भी सुप्रीम कोर्ट की अवमानना की है, व सुप्रीम कोर्ट को संसदीय गतिविधियों में हस्तक्षेप करने पर नकारात्मक संदेश भेजा है। जेपी नड्डा ने कहा है कि सांसद निशिकांत दुबे और दिनेश शर्मा के न्यायपालिका एवं देश के चीफ़ जस्टिस संजीव खन्ना पर दिए बयान से भारतीय जनता पार्टी का कोई लेना–देना नहीं है।निशिकांत ने कहा कि ‘अगर हर बात के लिए सुप्रीम कोर्ट जाना है, तो संसद और विधानसभा का कोई मतलब नहीं है, इसे बंद कर देना चाहिए’। दुबे ने कहा, “देश में धार्मिक युद्ध भड़काने के लिए सुप्रीम कोर्ट ज़िम्मेदार है। सुप्रीम कोर्ट अपनी सीमा से बाहर जा रही है। अगर हर बात के लिए सुप्रीम कोर्ट जाना है, तो संसद और विधानसभा का कोई मतलब नहीं है, इसे बंद कर देना चाहिए.” इसके साथ ही उन्होंने कहा, “इस देश में जितने गृह युद्ध हो रहे हैं उसके ज़िम्मेदार केवल चीफ़ जस्टिस ऑफ़ इंडिया संजीव खन्ना साहब हैं”। यह सभी बयान सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट पर वायरल हो चुके हैं। दिनेश शर्मा ने बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे के सुप्रीम कोर्ट पर दिए गए बयान का समर्थन किया है।
“जब बाबा साहब आंबेडकर ने संविधान बनाया था, तो उसमें उन्होंने विधायिका व न्यायपालिका के अधिकारों का स्पष्ट रूप से वर्णन किया है। भारत के संविधान के अनुसार, कोई भी लोकसभा, राज्यसभा को निर्देशित नहीं कर सकता है और उप राष्ट्रपति ने पहले ही इस पर अपनी सहमति दे दी है। कोई भी राष्ट्रपति को चुनौती नहीं दे सकता क्योंकि राष्ट्रपति सर्वोच्च हैं।” बीजेपी के दोनों सांसदों के बयान से पार्टी ने किनारा तो किया है परंतु कोई कार्यवाही नहीं की। इससे यह स्पष्ट है कि कहीं पर निगाहें, कहीं पर निशाना, का अनुसरण भाजपा कर रही है। जेपी नड्डा ने ‘एक्स’ एक पोस्ट की है, “बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे और दिनेश शर्मा का न्यायपालिका एवं देश के चीफ़ जस्टिस पर दिए गए बयान से भारतीय जनता पार्टी का कोई लेना–देना नहीं है।
यह इनका व्यक्तिगत बयान है, लेकिन बीजेपी ऐसे बयानों से न तो कोई इत्तेफाक रखती है और न ही कभी भी ऐसे बयानों का समर्थन करती है। बीजेपी इन बयानों को सिरे से खारिज करती है। भारतीय जनता पार्टी को न्यायपालिका का सम्मान करना चाहिए। उनके आदेशों और सुझावों को सहर्ष स्वीकार कर, सर्वोच्च न्यायालय सहित देश की सभी अदालतों को लोकतंत्र का अभिन्न अंग तथा संविधान के संरक्षण का मजबूत आधार स्तंभ मानना चाहिए। संवैधानिक पदाधिकारीयों, मंत्रिय व सांसदों को भी सुप्रीम कोर्ट के ख़िलाफ़ बोलने से रोका जाए। सुप्रीम कोर्ट भी ये कह रही है कि जब क़ानून बनाते हैं तो संविधान के मूलभूत ढांचे के ख़िलाफ़ मत जाइये। अगर संविधान के ख़िलाफ़ हैं, तो हम इस क़ानून को स्वीकार नहीं कर सकते हैं। कांग्रेस पार्टी चाहती है कि सुप्रीम कोर्ट स्वतंत्र, निष्पक्ष हो और संविधान ने उनको जो अधिकार दिए हैं उनका पूरा सम्मान करना चाहिए।
लेकिन ये बिलकुल साफ़ है कि जानबूझकर अलग-अलग आवाज़ें आ रही हैं व सुप्रीम कोर्ट को निशाना बनाया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड से लेकर वक़्फ़ बोर्ड तक सरकार को लेकर कहा है कि जो उसने किया है वो ग़ैर संवैधानिक है।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी व आरएसएस-बीजेपी द्वारा संविधान और अन्य संस्थाओं को ख़त्म करने पर आमादा है? सत्ता में पीठासीन लोगों को जनसेवक की भूमिका निभानी चाहिए, ना कि यह सत्ता का नशा सिर पर चढ़ जाना चाहिए। असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि पीएम मोदी अगर धमकी देने वालों को नहीं रोकेंगे तो देश कमज़ोर होगा।एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने हैदराबाद में एक जनसभा में कहा कि बीजेपी ‘अदालत को धमकी दे रही है। भाजपा संविधान को लेकर फ़्रॉड कर रही है व डरा रही है, धार्मिक युद्ध की धमकी दे रही है, मिस्टर मोदी बताओ की कौन कट्टर हो चुका है? सत्ता में आप हैं और आपके लोग कट्टर हो चुके हैं”। वहीं आम आदमी पार्टी की प्रवक्ता प्रियंका कक्कड़ ने निशिकांत दुबे की टिप्पणी को ‘घटिया’ बताया है। नकली डिग्रीयों वाले निशिकांत दुबे के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट अवमानना की कार्यवाही शुरू कर, उन्हें जेल भेजें, तभी ये ‘भाऊ-भाऊ सांसदों’ पर कुछ रोक लगेगी। निशिकांत दुबे ने वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के संदर्भ में विवादित बयान देकर सियासी तूफान खड़ा कर दिया। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन, पहले से ही वक्फ बिल पर असहमत हैं। उत्तर प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री शर्मा ने भी सुप्रीम कोर्ट की आलोचना करते हुए कहा कि कोई भी संसद या राष्ट्रपति को निर्देश नहीं दे सकता। भाजपा ने हमेशा न्यायपालिका का सम्मान किया है और उसके सुझावों एवं आदेशों को सहर्ष स्वीकार किया है, क्योंकि एक दल के तौर पर उसका मानना है कि शीर्ष अदालत समेत सभी अदालतें लोकतंत्र का अभिन्न अंग हैं, ऐसा nadda भाजपा अध्यक्ष ने कहा, वे संविधान की रक्षा के एक मजबूत स्तंभ हैं। निष्कर्षार्थ इस तरह से अदालत को धमकी देना, संविधान के अनुच्छेद142 का विरोधाभास है। इसे बी.आर. आंबेडकर ने बनाया था।
कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने निशिकांत के बयान को अपमानजनक करार देते हुए कहा कि शीर्ष अदालत पर उनका हमला स्वीकार्य नहीं है। यह सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ अपमानजनक बयान है। निशिकांत दुबे एक ऐसे व्यक्ति हैं जो लगातार सभी अन्य संस्थानों पर हमला बोलते रहते हैं। सुप्रीम कोर्ट पर उनका हमला स्वीकार्य नहीं है। बता दें, 16 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने नए संशोधित वक्फ कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की है। सलमान खुर्शीद, वरिष्ठ अधिवक्ता, पूर्व विदेश मंत्री, न्याय व अल्पसंख्याक मंत्री ने कहा, संसद द्वारा पारित कानूनों पर यदि कोई प्रश्नचिन्ह हो, तो सर्वोच्च न्यायालय ही उस पर अपना फेसला देकर लागू करने का अधिकार रखती है। मानन कुमार मिश्र, ने कहा कि निशिकांत भावना में बेह गए होंगें, परंतु सर्वोच्च न्यायालय सर्वोपरि है, और सभी को न्यायधीशों का सम्मान करना चाहिए। सत्यमेव जयते: व भारत के लोग, विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका, संविधान के रक्षक बनेंगे, ऐसा देशहित में होगा।
प्रो. नीलम महाजन सिंह (वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक विश्लेषक, शिक्षाविद, दूरदर्शन व्यक्तित्व, सॉलिसिटर फॉर ह्यूमन राइट्स संरक्षण व परोपकारक)