मुरझाए चेहरे खिल उठे, हर घर पहुंचे उजाला

Withered faces blossomed, light reached every house

नरेंद्र तिवारी

दीपावली की उजास से मुरझाए चेहरे भी खिल उठे, हर घर में प्रगति का प्रकाश पहुंचे, दीप पर्व में छुपा यह महत्वपूर्ण संदेश हमें सामाजिक सहयोग की प्रेरणा देता है। सामाजिक सहयोग की यह भावना सिर्फ दीपावली के दिनों में ही नहीं अपितु साल के 365 दिन चलती रहनी चाहिए। आपसी सहयोग की भावना से ही समाज में समानता स्थापित हो सकती है। इसी तरह की निर्मल ओर पवित्र सहयोग की भावना का संदेश देता एक टीवी विज्ञापन जब भी देखता हूँ, मन में निर्मल ओर पवित्र सामाजिक सहयोग की भावना बलवती होने लगती है। एचपी इंडिया कंपनी द्वारा दिखाए जाने वाले इस विज्ञापन का निर्माण वर्ष 2018 में हुआ विज्ञापन में दीपावली के दौरान सड़क के किनारे बैठी एक बुजुर्ग महिला दिए बेच रही है, दीपावली की खरीदी के दौरान अपनी माँ के साथ बाजार आया बालक अपनी माँ से दीपक खरीदने को कहता है, बुजुर्ग महिला से दिए खरीदने हेतु अनिच्छा जताती माँ अपने पुत्र के साथ आगे निकल आती है। किंतु संवेदनशील बालक अकेला आकर दीपक खरीदते हुए बुजुर्ग महिला से जब हैप्पी दीपावली कहता है तब अपने पर्याप्त दीपक न बिक पाने से निराश बुजुर्ग महिला बालक से कहती है ’काहे की हैप्पी दिवाली, जब तक यह दिए न बिक जाए’ बालक बुजुर्ग महिला की मोबाइल से फोटो खींचता है, अपने लेपटॉप से बुजुर्ग अम्मा की फोटो सहित एक पोस्टर बनाता है जिसपर लिखा होता है अम्मा की दीपावली हैप्पी बनाओ, जाकर उनसे दिए ले आओ। इन पोस्टरों को अपने आसपास के घरों में ओर दीवारों पर चिपका देता है। पोस्टर देखकर, पढ़कर बुजुर्ग अम्मा के सारे दिए बिक जाते है। मुरझाया चेहरा खिल उठता है। दीपावली के दौरान भावप्रधान यह विज्ञापन समाज में सहयोग की भावना को बढ़ाता है, परस्पर सहयोग करने की प्रेरणा भी देता है। एचपी इंडिया का एक ओर भावना प्रधान विज्ञापन है जिसमें बुजुर्ग चित्रकार की पेंटिंग की दुकान महानगर के बाजार से हटा दी जाती है, तब यह बुजुर्ग कहता है, आजकल शहरों में हमारे लिए जगह नहीं रही। बुजुर्ग के मुंह से निकले उक्त कथन को एक कला पसंद संवेदनशील महिला सुन रही होती है जो किसी कंपनी की प्रमुख होती है। अपनी कंपनी के ऑफिस में दीपावली की सजावट हेतु उस बुजुर्ग की चित्रकला का उपयोग करती है। बुजुर्ग को कंपनी के ऑफिस आमंत्रित करती है। तब उक्त बुजुर्ग के चेहरे पर आने वाली खुशी निश्चित ही समाज के हर वर्ग की हैप्पी दीपावली का भावना प्रदान संदेश है। सहयोग का पाठ 2018 में बने उक्त विज्ञापन सिखाते प्रतीत होते है। भारतीय संस्कृति सनातन संस्कृति है। हमारी परंपरा के महान चरित्रों ने भी आपसी सहयोग के उदाहरण प्रस्तुत किए है। संवेदनाओं को समझा है, दारुण दुख से पीड़ित लोगों के साथ खड़े होकर उन्हें कष्टों से उभारा है। दीपावली का महान उत्सव जिस महान चरित्र के 14 वर्षीय वनवास से अयोध्या लौटने, दानवी प्रकृति से विजय होने की खुशी में सदियों से मनाया जा रहा है। वह है मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जिनका संपूर्ण जीवन समानता और आपसी सहयोग की भावना को समर्पित रहा। तुलसीदास रचित रामचरितमानस में शबरी और श्रीराम के मिलन का वर्णन करती चौपाई ’सबरी देखि राम गृह आए। मुनि के बचन समुझि जियं भाए।। आरण्यकांड में श्रीराम और शबरी के मिलन का सुंदर चित्रण किया है। शबरी प्रभु राम के आगमन पर उन्हें बेर खिलाती है। बेर मीठे ही प्रभु खा पाए इसलिए हर बेर को चखकर सिर्फ मीठे बेर ही प्रभु को खिलाती है। शबरी ने प्रभु श्रीराम को बताया था कि मतंग ऋषि उन्हें यह बता चुके थे कि एक दिन सीता को खोजते हुए राम यहीं आएंगे। इस दौरान जहां सबरी ने भगवान राम को सीता जी को खोजने के लिए वानर राज सुग्रीव एवं हनुमान जी की मदद के बारे में बताया तो श्रीराम ने शबरी को नवधा भक्ति का उपदेश दिया था। सबरी ओर राम की यह मुलाकात दक्षिण–पश्चिम गुजरात के डांग जिले के सुबीर गांव के पास सबरी धाम में होने की जनश्रुति चली आ रही है। वनवासी सबरी ओर श्रीराम की मुलाकात का यह प्रंसग मानवीय जीवन की कोमल भावनाओं का प्रकटीकरण है। इसी तरह के निर्मल भाव केवट और राम की मुलाकात में भी नजर आते है। कोमल, निर्मल ओर पवित्र भावनाओं के अनेकों प्रसंग श्री राम के जीवन से जुड़े है। भारतीय समाज के एक ओर नायक श्री कृष्ण के जीवन से जुड़े अनेकों प्रसंग दुनियां का मार्ग दर्शन कर रहे है, किंतु सुदामा और श्रीकृष्ण की मित्रता की कहानी दोस्ती की अमिट यादगार और प्रेरणादाई प्रसंगों में दर्ज हो गई। जब भी ईमानदार मित्रता की चर्चा होती है। कृष्ण–सुदामा दोस्ती का यह प्रंसग बरबस जहन में आ जाता है।

सदियों से चले आ रहे कोमल, पवित्र और मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण यह प्रसंग संपूर्ण विश्व के मार्गदर्शक सूत्र के रूप में अपनी भूमिका निभा रहे है। किंतु जब धन, पावर, सत्ता का नशा व्यक्ति के सर चढ़कर बोलने लगता है, निजी स्वार्थों से वशीभूत होकर व्यक्ति इन कोमल भावनाओं के प्रतिकूल जाकर कार्य करने लगते है। भावनाओं की प्रतिकूलता व्यक्ति के जीवन को नकारात्मकता प्रदान करती है। यहीं नकारात्मकता धन, संपदा, सत्ता, ताकत के घमंड को तोड़ती है।

दीपावली के महान सनातनी पर्व पर दया, करुणा, सेवा की भावनाओं का प्रदर्शन होना चाहिए। देखने में आता है कि इन्हीं पवित्र भावनाओं से प्रेरणा पाकर अनेकों संस्थाएं, संगठन और व्यक्ति दिन दुखियों के चेहरों पर मुस्कुराहट लाने के प्रयास में जुटे रहते है। वर्ष 1966 में बनी फिल्म बादल का यह खूबसूरत गीत ’अपने लिए जिए तो क्या जिए, ऐ दिल जी तू जमाने के लिए, गीतकार मन्नाडे द्वारा गाया यह गीत भी इन्हीं कोमल और पवित्र भावनाओं का प्रतिनिधि गीत है। मनुष्य का जीवन सदैव एकसा नहीं रहता है, उतार–चढ़ाव, सुख–दुख सभी के जीवन का हिस्सा है। खराब और बुरे दौर में आपके द्वारा किया गया सहयोग, प्रेम के बोल, प्रकट संवेदनाएं बल देती है। व्यक्ति फिर से खड़े होकर लड़ने को तैयार होता है, अपने बुरे दौर को हराने के प्रयास में जुट जाता है। दुनियाँ को प्रकाशित करने वाली इन भावनाओं का दीपों के इस पर्व पर भी भरपूर उपयोग करें। सबकी दीपावली हैप्पी हो, सुदूर बस्ती की झोपडी भी प्रकाशित हो, मुरझाए चेहरे खिल उठे, हर घर पहुंचे दीपक का प्रकाश। यही तो है दीपावली का असली संदेश।

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