क्या प्रदेश के युवाओं को नशा बेचने वाला बनाना चाहती है मध्यप्रदेश सरकार?

Does the Madhya Pradesh government want to turn the state's youth into drug dealers?

विजया पाठक

देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भ्रष्टाचार तथा नशा मुक्त प्रदेश बनाने की बात समय-समय पर करते रहे हैं। जीरो टॉलरेंस की यह नीति का वाक्य मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव से हमने एक नहीं बल्कि कई बार सार्वजनिक कार्यक्रमों, बैठकों में सुनी है। लेकिन उनकी यह नीति धरातल पर कितनी प्रभावी है उसका सबसे बड़ा उदाहरण है प्रदेश के वित्तमंत्री जगदीश देवड़ा। लगभग डेढ़ माह पहले मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में 1800 करोड़ रुपये के एमडी ड्रग्स की बरामदी हुई थी। ड्रग्स की इतनी बड़ी खेप की तैयारी वो भी राजधानी जैसे स्थान पर होना न सिर्फ अपने आप में चौंकाने वाली घटना थी बल्कि उससे कहीं ज्यादा चौंकाने वाली बात यह थी कि उस पूरे मामले में प्रदेश के वित्तमंत्री जगदीश देवड़ा का नाम शामिल होना था। लेकिन प्रदेश के मुखिया डॉ. मोहन यादव और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जगदीश देवड़ा से न तो कोई सवाल-जवाब किये और न ही उनसे इस पूरे मसले पर इस्तीफा देने की बात कही।

देवड़ा को आखिर किसने दी क्लीनचिट
जब एमडी ड्रग्स से जुड़ी यह जानकारी सामने आई तो सभी इस बात को लेकर चिंतित थे कि आखिर इतना बड़ा कारोबार चलाने वाला व्यक्ति आखिर कौन है, कौन वो लोग हैं जिनसे इन नशे के व्यापारियों को संरक्षण प्राप्त है। मामले से जब जांच अधिकारियों ने परते उठाना शुरू की तो इसमें प्रदेश के वित्तमंत्री का नाम शामिल होना जनता को हतप्रभ कर दिया। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर देवड़ा को बगैर किसी जांच के क्लीनचिट किसने दी है।

क्या शांति के टापू को नशे का गढ़ बनाना चाहते हैं देवड़ा?
वित्तमंत्री जगदीश देवड़ा खुद जिस क्षेत्र से चुनाव लड़ते हैं वह मंदसौर क्षेत्र राजस्थान की सीमा से सटा हुआ क्षेत्र है। प्रदेश में सबसे अधिक अफीम, गांजा और ड्रग्स का कारोबार नीमच और मंदसौर से होता है। यही ऐसा क्षेत्र है जहां से न सिर्फ मध्यप्रदेश बल्कि पूरे देश में नशा सप्लाई किया जाता है। भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी के अनुसार किसी भी राज्य में इतने बड़े स्तर पर नशे का कारोबार बगैर किसी राजनैतिक संरक्षण के नहीं किया जा सकता है। और यह मामला तो राजस्थान, मप्र और अन्य राज्यों से जुड़ा हुआ है। ऐसे में अगर वित्तमंत्री जगदीश देवड़ा पर नशे को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के आरोप लगे हैं तो उन्हें इस पूरे मामले की जांच के लिये खुद आगे आना चाहिए। देवड़ा की चुप्पी और सरकार की अनदेखी ने इस बात को स्पष्ट कर दिया है कि जगदीश देवड़ा शांति के टापू को नशे का गढ़ बनाने में कोई कोताही नहीं बरतना चाहते।

पुलिस अफसरों को जनता ने दिखाई थी एकजुटता
सूत्रों के अनुसार पिछले दिनों जब इस पूरे मामले की जांच करने के लिये पुलिस मंदसौर जिले में इस मामले के सरगना लाला को गिरफ्तार करने पहुंची तो स्थानीय लोगों ने पूरी एकजुटता के साथ लाला का समर्थन किया और पुलिस को खाली हाथ वहां से लौटना पड़ा। अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कितने बड़े स्तर पर प्रदेश में नशे का यह कारोबार संचालित हो रहा था। इस तरह की घटनाएं न सिर्फ शर्मनाक हैं, बल्कि घातक भी हैं। क्योंकि अगर इस कारोबार को यही नहीं रोका गया तो वह दिन दूर नहीं जब प्रदेश के युवा रोजगार देने वाला नहीं बल्कि नशा बेचने वाला बन जायेगा।

इन राज्यों में भी सप्लाई होता था नशा
रतलाम तथा आसपास के मंदसौर व राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले में ड्रग्स का बड़ा कारोबार होता है। विशेषकर ड्रग प्रतापगढ़ व मंदसौर से लाकर रतलाम के रास्ते प्रदेश के अन्य नगरों तथा गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों भेजा जाता है। रतलाम पुलिस ड्रग्स के खिलाफ विशेष अभियान चला रही है और दो वर्षों में 200 से अधिक तस्करों तथा ड्रग परिवहन करने वालों को गिरफ्तार कर बड़ी मात्रा में डोडाचूरा, अफीम स्मैक, एमडीएमए ड्रग जब्त किया गया है। रतलाम में दो सालों में पुलिस ने आरोपितों से 4523 क्विंटल डोडाचूरा, 08 किलो 150 ग्राम अफीम, 969 ग्राम स्मैक व 03 किलो, 410 ग्राम एमडीएमए जब्त किया है। 36 किलो 250 ग्राम गांजा तथा 196 किलो गांजे के पौधे जब्त किए हैं।

लंबे समय बाद बड़ी कार्रवाई
मंदसौर पुलिस की कार्रवाई सिर्फ करियर तक ही सीमित रहती है। इसके चलते जिला बड़े तस्करों के लिए पनाहगाह बना हुआ है। यहां की राजनीति में भी तस्कर काफी अंदर तक घुसे हुए हैं। इक्का-दुक्का मामलों को छोड़ दें तो लंबे अरसे बाद मंदसौर जिले के बड़े तस्कर हरीश आंजना पर कार्रवाई हुई है। रात भर चली पूछताछ में हरीश आंजना ने राजस्थान के लाला का भी नाम लिया है, जो भोपाल से एमडी लाता था और बाद में हरीश व अन्य को सप्लाई करता था। स्थानीय पुलिस को इसकी भनक तक नहीं लगी। पुलिस ने जिले में लगभग 180 प्रकरण भी बनाए हैं और इनमें 300 आरोपित भी बनाए हैं, पर अधिकांश करियर ही थे। इनको औसत 05 से 10 साल तक की सजा हुई। एक भी बड़े तस्कर को सजा नहीं हुई है।

उज्जैन में दो सालों में ड्रग संबंधी 34 मामले
उज्जैन जिले में बीते दो सालों के दौरान ड्रग संबंधी 34 मामले दर्ज हुए हैं। इनमें 70 आरोपितों को गिरफ्तार किया गया है। हालांकि इनमें कोई बड़े मामले नहीं है। स्थानीय मादक पदार्थ तस्कर व पैडलर ही छोटी-छोटी पुड़िया बनाकर ड्रग्स बेच रहे हैं। बदमाशों ने पूछताछ में राजस्थान के प्रतापगढ़, छोटी व बड़ी सादड़ी, मंदसौर, नीमच से ही मादक पदार्थ लाना बताया है। दो सालों के दौरान कोई बड़ी सजा नहीं हुई है।

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