
रक्षा-राजनीति नेटवर्क
स्वच्छ भारत मिशन-शहरी के अंतर्गत शौचालय की देखभाल करने वाले शहरी स्वच्छता में बदलाव करने वाले अहम बिंदु बन कर सामने आए हैं। इनकी भूमिका केवल स्वच्छता बनाए रखने से कहीं अधिक है और वे वे स्वच्छता को बढ़ावा देने, लोगों को शिक्षित करने और स्वच्छता सुविधाओं के उचित संचालन को सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। देखभाल करने वाले स्वच्छता बनाए रखने,अपशिष्ट को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने और उपयोगकर्ता को बेहतर अनुभव देने में सहायक होते हैं। शौचालय की देखभाल करने वाले नियमित सफाई, अपशिष्ट पृथक्करण और स्वच्छता जागरूकता जैसी आवश्यक सेवाएं प्रदान करके, मिशन के लक्ष्यों को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। काम के प्रति उनका समर्पण और अभिनव दृष्टिकोण शहरी स्वच्छता को बेहतर कर रहा है। वे सार्वजनिक शौचालय के कार्यात्मक होने और स्वच्छ भारत के बड़े दृष्टिकोण में भी योगदान कर रहे हैं
चहल-पहल से भरे केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ में शहरी स्वच्छता के क्षेत्र में एक शांत क्रांति हो रही है। यहां किरण नामक एक स्वच्छता सेवी देश भर के शहरों में कई अन्य लोगों की तरह, शहरी स्वच्छता को फिर से परिभाषित करने के स्वच्छ भारत मिशन के प्रयासों में एक प्रमुख भूमिका निभा रही है। किरण ने चंडीगढ़ में आजीविका के लिए संघर्ष करते हुए एक शौचालय की देखभाल करने का कार्य प्रारंभ किया। किरण के अनुसार सफाई दल में शामिल होने के बाद से उनके जीवन में बदलाव आया है। जीवनशैली में सुधार होने के साथ-साथ स्थिर आय ने उन्हें अपने और अपने परिवार के जीवन स्तर को बेहतर करने तथा बेहतर अवसर और उज्ज्वल भविष्य प्रदान करने में सक्षम बनाया है।
किरण का दिन चंडीगढ़ शहर के जागने से बहुत पहले ही शुरू होता है। हाथ में झाड़ू और सफाई का सामान लेकर वह शहर के बीचों-बीच स्थित कई सार्वजनिक शौचालयों में से एक में प्रवेश करती हैं। उनका काम सिर्फ़ फर्श साफ करना या दीवारों पर पोछा लगाना नहीं है; बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि शौचालय का हर इंच साफ हो, कचरे का सही तरीके से समाधान हो और उपयोगकर्ता को स्वच्छ वातावरण मिलने के साथ-साथ वे सहज महसूस करें। रेखा के लिए यह एक सामान्य काम से बढ़कर गर्व, जिम्मेदारी और समुदाय के स्वास्थ्य और स्वच्छता पर उनके प्रभाव के बारे में है। हर आगंतुक का मुस्कुराकर स्वागत करने के बाद किरण इस अवसर का उपयोग स्वच्छता संबंधी सुझाव साझा करने के लिए करती हैं। इसके साथ ही वो स्थानीय लोगों को हाथ धोने के महत्व और स्वच्छता सुविधाओं के उचित उपयोग के बारे में सिखाती हैं। एक अन्य स्वच्छता सेवी गीता ने व्यक्तिगत चुनौतियों पर विजय प्राप्त की है और चैंपियन के रूप में उभर कर सामने आई हैं। उन्होंने न केवल अपने संघर्षों पर विजय प्राप्त की है, बल्कि चंडीगढ़ में सार्वजनिक शौचालयों का प्रबंधन करके एक महत्वपूर्ण प्रभाव भी डाला है। अपने अथक प्रयासों के माध्यम से, वह स्वच्छता के विषय पर जागरुकता को आगे बढ़ाने में कार्यरत हैं तथा समुदाय के लिए स्वच्छ और सुव्यवस्थित सार्वजनिक सुविधाओं को बनाए रखने का महत्वपूर्ण संदेश का विस्तार कर रही हैं।
दिल्ली, बेंगलुरु और चेन्नई जैसे शहरों में, किरण जैसे शौचालय की देखभाल करने वाले लोग शहरी स्वच्छता में महत्वपूर्ण बदलाव ला रहे हैं। जयपुर में, सुलभ शौचालय के देखभालकर्ता अजय कुमार ने न केवल स्वच्छता बनाए रखने का बीड़ा उठाया है, बल्कि नागरिकों को शौचालय में उचित शिष्टाचार के बारे में शिक्षित भी किया है। अपने दैनिक प्रयासों के माध्यम से, उन्होंने ना सिर्फ स्वच्छता और सफाई का एक उच्च मानक स्थापित करे हैं, और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित किया है। वह स्वच्छ भारत मिशन में योगदान देने में गर्व से संतुष्टि व्यक्त करते हैं। यह जानते हुए कि उनके प्रयास सभी के लिए एक स्वस्थ वातावरण को बढ़ावा देने में मदद करते हैं।
तेलंगाना में कोरुतला ऑटो ड्राइवर्स यूनियन के सदस्य एमडी इरफान ने वार्ड 15 में ऑटो स्टैंड के पास शौचालय को अंगीकार लेकर सार्वजनिक स्वच्छता में सुधार के लिए एक उल्लेखनीय पहल की है। साथी ऑटो ड्राइवरों के साथ काम करते हुए, उन्होंने प्रति ड्राइवर 10 रुपए का दैनिक योगदान प्राप्त किया, जिससे रखरखाव के लिए हर महीने 15 हजार रुपए की आय हुई। यूएलबी कमिश्नर ने सफाई कर्मचारियों के वेतन के लिए भी धन उपलब्ध कराया, जिससे यूनियन का वित्तीय भार कम हुआ है। इस सहयोग ने एक उपेक्षित शौचालय को एक स्वच्छ, सुलभ सुविधा में परिवर्तित कर दिया है, जिससे खुले में शौच करना बंद हो गया है। इससे हर व्यक्ति को सेवा मिल रही है, जो स्वच्छता के लिए सामुदायिक प्रयास की शक्ति को दर्शाता है।
श्रीमती बी. लालमिंगथांगी की कहानी भी दृढ़ता और दृढ़ संकल्प की गाथा है। वर्ष 2019 से, उन्होंने सेरछिप में तुइकुआह वेंग सार्वजनिक शौचालय का प्रबंधन किया है। उन्होंने परिसर में एक छोटी सी किराने की दुकान चलाते हुए शौचालय के रखरखाव की जिम्मेदारी को भी संभाला है। उनके प्रयासों ने एक साधारण कार्य को एक महत्वपूर्ण सामुदायिक सेवा में बदल दिया है। सार्वजनिक शौचालय से औसतन 5,000 रुपये से अधिक की मासिक आय होती है। जिसमें परिचालन लागत की पूर्ति के साथ श्रीमती लालमिंगथांगी को एक सतत आय मिली है। उनके समर्पण ने न केवल उनके परिवार का सहयोगा किया है, बल्कि सेरछिप के लोगों के लिए स्वच्छता में भी सुधार किया है।
सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता के प्रति प्रतिबद्धता ने सामुदायिक और सार्वजनिक शौचालयों की देखभाल करने वालों को गुमनाम नायक बनाया है, जो शहरी भारत में समुदायों के कल्याण में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।