इंसान के मन से लगभग खत्म हो चुकी है मानवीय संवेदना

Human sensitivity has almost vanished from the human mind

ओम प्रकाश उनियाल

किसी मुद्दे को लेकर तूल देना, तूल देकर उग्र रूप देना, उग्र रूप से हिंसा का वातावरण पैदा करने की प्रवृति आज तेजी से हरेक पर हावी हो रही है। सहनशीलता, मानवता, सहिष्णुता, दयालुता तो इंसान के मन से लगभग खत्म हो चुकी है। मानवीय संवेदनाओं का कोई मूल्य ही नहीं रहा। संवेदनहीन हो चुका है इंसान। यही कारण है जिसे देखो वही उग्रतापूर्ण व्यवहार करने पर उतारू रहता है। छोटी-छोटी बातों को लेकर इंसान इतना हिंसक हो जाता है कि वह अपने आगे-पीछे की कुछ नहीं सोचता। किसी भी घटना या मुद्दे को हिंसा का रूप देने वाले शायद इसे अपना शक्ति-प्रदर्शन दिखाने का प्रयास करते हैं या फिर अपना दबदबा बनाए रखने में अपनी शान समझते हैं। हिंसा से जो जनधन की हानि होती है उसका खामियाजा तो आम आदमी को ही भुगतना पड़ता है। आम आदमी ही उसमें पिसता है। हिंसा फैलाने वाले तो मुद्दे को तूल देकर आग में घी डालने वाला काम करके एक तरफ हो जाते हैं। शिकंजे में जकड़े जाते हैं बेकसूर। मुद्दे धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक या अन्य किसी प्रकार के फिजूल हों उन्हें तिल का ताड़ बनाने से बचना चाहिए। बल्कि, सोच-विचार कर शांतिपूर्वक सुलझाना चाहिए। अनावश्यक बहसबाजी कर उलझाने का प्रयास नहीं करना चाहिए। इंसान में सोचने की शक्ति है यदि उसका दुरुपयोग करने के बजाय सदुपयोग किया जाए तो कई मुद्दे चुटकी में हल किए जा सकते हैं। लेकिन फितरती, बददिमागी सोच वाले हमेशा ही उग्रता को ही अपनाते हैं। हालांकि, इसका परिणाम वे भी बखूबी जानते हैं। मगर संकीर्ण विचारधारा से घिरे होने के कारण उनका मन भी कलुषित रहता है। कुल मिलाकर उग्रता ही किसी मुद्दे का हल नहीं होती। शांति, धैर्य और सही सोच जटिल से जटिल मुद्दे सुलझाए जा सकते हैं। आज के समय हर इंसान अहं के दौर से गुजर रहा है। किसी पर राजनीतिक पहुंच का अहं है तो किसी पर धन का।

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