वक्फ कानून के विरोध में क्यों हो रही है हिंसा – क्या कानूनी लड़ाई प्रयाप्त नहीं है ?

Why is there violence against the Wakf Act - is the legal fight not enough?

अशोक भाटिया

देश में नया वक्फ कानून लागू हो गया है। केंद्र सरकार ने 8 अप्रैल को वक्फ संशोधन अधिनियम की अधिसूचना जारी कर दी है। इसमें कहा गया है कि आठ अप्रैल से पूरे देश में वक्फ अधिनियम को प्रभावी कर दिया गया है। बता दें, बीते सप्ताह संसद में लंबी चर्चा के बाद वक्फ संशोधन अधिनियम पारित हुआ था, 5 अप्रैल को राष्ट्रपति ने इसे अपनी मंजूरी दी थी। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं था कि नया वक्फ कानून देश में कब से लागू होगा। नए वक्फ अधिनियम में कई बदलाव किए गए हैं, जिसमें सबसे विवादित संशोधन वक्फ बोर्ड में दो गैर-मुस्लिमों को शामिल करना है। इसको लेकर पूरे देश में बवाल मचा हुआ है और मुस्लिम समाज के लोग प्रदर्शन भी कर रहे हैं, यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट में भी कई याचिकाएं डाली गई हैं।

देशभर में वक्फ कानून को लेकर राजनीतिक और सामाजिक माहौल लगातार गरमाता जा रहा है। कहीं इस कानून के समर्थन में बोलने पर लोगों को पीटा जा रहा है, तो कहीं विरोध के नाम पर हिंसा और आगज़नी हो रही है। सड़क से सदन तक, वक्फ कानून को लेकर डराने वाली तस्वीरें सामने आ रही हैं। ये तब है जब वक्फ कानून का मामला देश की सबसे बड़ी अदालत में पहुंच चुका है। बड़ी बात ये है कि 15 या 16 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में वक्फ कानून के खिलाफ डाली गई अर्जी पर सुनवाई होनी है।

उत्तर प्रदेश के संभल में जाहिद सैफी को इसलिए पीटा गया क्योंकि उन्होंने वक्फ कानून का समर्थन किया था। कानपुर में ओला टैक्सी ड्राइवर ने एक वरिष्ठ अधिकारी की इसलिए पिटाई कर दी क्योंकि वह फोन पर वक्फ कानून की चर्चा कर रहे थे। मणिपुर में बीजेपी नेता अली असगर का घर जला दिया गया क्योंकि उन्होंने इस कानून का समर्थन किया था। वहीं, जम्मू-कश्मीर विधानसभा में वक्फ कानून को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के विधायक आपस में भिड़ गए।

इतना ही नहीं, मंगलवार को बंगाल के मुर्शिदाबाद में वक्फ कानून के खिलाफ प्रदर्शन उग्र हो गया और प्रदर्शनकारियों ने कई वाहनों को आग लगा दी। इसके बाद पुलिस को लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले दागने पड़े। मुर्शिदाबाद के कुछ इलाकों में BNSS की धारा 163 लागू करनी पड़ी है। इन इलाकों में अगले 48 घंटों तक निषेधाज्ञा लागू रहेगी और किसी भी प्रकार के सामूहिक जमावड़े पर रोक होगी। एक वरिष्ठ जिला पुलिस अधिकारी के अनुसार, प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पथराव करना शुरू कर दिया और इसके बाद मची अफरातफरी में कुछ पुलिस वाहनों में भी आग लगा दी गई।

दरअसल वक़्फ़ बोर्ड अधिनियम के पारित होने के बाद से ही कुछ मुस्लिम कट्टरपंथी नेता व संगठन देश के मुसलमानों को भड़काने बरगलाने व हिंसा के लिए उकसाने में सतत् रूप से सक्रिय हैं। झूठ फैलाकर दुष्प्रचार करने वाली इस गैंग में अब कुछ कथित मुस्लिम बुद्धिजीवी भी कूद पड़े हैं जिन्होंने हाल ही में एक पत्र देश के मुस्लिम सांसदों को लिखा है। विश्व हिंदू परिषद के अखिल भारतीय प्रचार प्रसार प्रमुख श्री विजय शंकर तिवारी का कहना है कि यह पत्र मिथ्या प्रचार कर मुस्लिम समाज को हिंसा व देश विरोध के लिए प्रेरित करने के साथ संसदीय व्यवस्था तथा संविधान का सीधा सीधा उल्लंघन है। इस पत्र के माध्यम से उनके मुस्लिम इंडिया’ बनाने के मंसूबों की भी कलई खुल गई है जो सपना कभी कट्टरपंथी नेता सैयद शहाबुद्दीन ने भी देखा था।पत्र में अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा की तो बात की है किंतु उसमें नाम सिर्फ मुसलमानों का लिया है। इसमें ‘मुस्लिम समाज का गला घोंटने’ और ‘मुसलमानों के गरिमापूर्ण अस्तित्व के लिए संघर्ष’ करने के लिए उकसाने की बात की है। पत्र में ‘मुसलमानों की सामूहिक आवाज़ को बुलंद’ कर संसद के अंदर व बाहर प्रदर्शन व संसद के बहिष्कार की अपील भी की है जिससे ‘देश विदेश के मीडिया का रणनीतिक रूप से ध्यान आकृष्ट किया जा सके। यह कितना दुर्भाग्य पूर्ण है कि इस पत्र के हस्ताक्षरकर्ता सिर्फ कट्टरपंथी मुस्लिम नेता या जिहादी संगठन नहीं अपितु, उनके साथ भारत के संविधान में पंथ निरपेक्षता की शपथ खा कर विधायक, सांसद, आईएएस, आईपीएस, सैन्य अधिकारी, अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन, विश्व विद्यालयों के कुलपति, वक्फ बोर्ड के अधिकारी, वरिष्ठ अधिवक्ता व पत्रकार बने लोग भी शमिल हैं। इन सब के लिए देश से बड़ा मजहब है, जिसके लिए ये लोग किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हैं। इन्हें पता है कि जब मुस्लिम कट्टरपंथी सड़कों पर उतरते हैं तो हिंसा उपद्रव व आगजनी के अलावा कुछ नहीं करते फिर भी उन्हें इसके लिए उकसा रहे हैं।

विहिप ने यह भी कहा कि मजहबी आधार पर भारत के एक और विभाजन व ‘मुस्लिम इंडिया’ बनाने का इनका दिवास्वप्न तो कभी पूरा नहीं होगा किंतु हां इनके इस भड़कावे के परिणाम स्वरूप देश भर में यदि कुछ उपद्रव हुआ तो उसकी जिम्मेदारी इन सभी हस्ताक्षरकर्ताओं को लेनी होगी और सम्पूर्ण देश के समक्ष ये अपराधी के रूप में खड़े होंगे। विहिप ने कहा कि यह स्मरण रखना चाहिए कि इन कथित मुसलमानों के अलावा देश के सभी अल्पसंख्यक इस नए कानून से प्रसन्न हैं क्योंकि अधिकांश लोग वक्फ बोर्ड व उसके अवैध कब्जाधारियों के आतंक से त्रस्त हैं।स्मरण रहे कि भारत एक संप्रभु, पंथ निरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य है, जिसकी मूल आत्मा संविधान है। किसी भी संगठन द्वारा यह कहना या संकेत देना कि उनके लिए मज़हबी क़ानून संविधान से ऊपर है, न केवल भारत की एकता और अखंडता के लिए खतरा है, बल्कि यह लोकतंत्र और न्याय व्यवस्था का भी अपमान है।हम केंद्र सरकार और न्यायपालिका से अपेक्षा करते हैं कि इस पत्र प्रकरण को गंभीरता से लिया जाए क्योंकि इसी मानसिकता ने पहले ही भारत का विभाजन कराया था। संविधान से ऊपर मज़हब को रखने वाली सोच देश की आंतरिक सुरक्षा और सामाजिक समरसता के लिए भी घातक हो सकती है।

अब सवाल यह भी उठता है कि आखिर इन मतभेद के बीच वाद और संवाद की जगह हिंसक सोच क्यों? क्या समाज में सहनशीलता घट रही है और साम्प्रदायिकता बढ़ रही है? क्या किसी मुद्दे पर वैचारिक मतभेद समाज में हिंसा को बढ़ावा दे रहा है? क्या भारत जैसे देश में हिंसा वाली सोच अब सबसे बड़ा खतरा है? सवाल इसलिए उठ रहे है क्योंकि इन तीन कृषि कानून का विरोध हुआ तो हिंसा की जगह सत्याग्रह की राह आंदोलनकारियों ने चुनी। सीएए का विरोध हुआ तो आंदोलनकारियों ने हिंसा की बजाय अहिंसात्मक प्रदर्शन की राह अपनाई। लेकिन वक्फ कानून के विरोध-प्रदर्शन के बीच कुछ जगह हिंसा की घटनाएं सामने आई। क्या हिंसक सोच, वक्फ कानून का विरोध कर रहे लोगों के आंदोलन को कमजोर कर सकता है? इन किसी मुद्दे पर मनभेद और मतभेद के बीच वाद-संवाद तो ठीक है, लेकिन वाद संवाद की लक्ष्मण रेखा क्यों बार-बार टूट रही है। देश में पर्व और त्योहार पर तनाव है, मंदिर-मस्जिद को लेकर तनाव है, अब तो संसद से बने कानून को लेकर भी तनाव है। आखिर हर मुद्दों में घुली सांप्रदायिकता की बीमारी की दवा क्या है? मतबल विरोध-प्रतिरोध तो ठीक है लेकिन इतनी नफरत क्यों, इतना क्रोध क्यों? सवाल बड़ा है, क्योंकि एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में सांप्रदायिक दंगों के ग्राफ में तेजी से उछाल आया है।

अब जबकि सुप्रीम कोर्ट में इस नए कानून के खिलाफ 10 से ज्यादा याचिकाएं दाखिल हुई हैं है तो हिंसा होना बेवजह है । वक्फ कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने वालों में कई बड़े नाम शामिल हैं। इसमें ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमीयत उलमा-ए-हिंद जैसी संस्थाएं हैं। इसके अलावा पार्टियों के नेता भी कोर्ट पहुंचे हैं। इनका कहना है कि यह कानून संविधान के कई नियमों जैसे धार्मिक आजादी और समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है। याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि सरकार इस कानून के जरिए वक्फ संपत्तियों पर ज्यादा नियंत्रण लेना चाहती है। कई जानकारों का दावा है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने फैसले में यह स्पष्ट कर चुका है कि ‘एक बार वक्फ, हमेशा के लिए वक्फ’ होता है। यानी अगर कोई संपत्ति वक्फ को दे दी जाती है तो उस संपत्ति का स्वरूप आगे कभी नहीं बदलेगा।

केंद्र सरकार ने इन याचिकाओं को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल कर दी है ताकि वह अपनी बात रख सके। सरकार का कहना है कि यह कानून देश के हित में है और इसे बनाने में सभी नियमों का पालन किया गया है। सरकार नहीं चाहती कि कोर्ट बिना उसकी बात सुने कोई फैसला दे, जिससे कानून पर रोक लग जाए या उसे रद्द कर दिया जाए। इसलिए उसने पहले ही कोर्ट में अर्जी देकर कहा कि कोई भी फैसला लेने से पहले उसका पक्ष सुना जाए।केंद्र सरकार का कैविएट दाखिल करने का मुख्य मकसद यह सुनिश्चित करना है कि वक्फ कानून को लेकर कोई जल्दबाजी में फैसला न हो। सरकार चाहती है कि कोर्ट इस कानून के पीछे की मंशा और इसके फायदों को समझे। साथ ही, वह उन आरोपों का जवाब देना चाहती है जो याचिकाकर्ताओं ने लगाए हैं। सरकार का मानना है कि अगर उसकी बात नहीं सुनी गई तो कानून के खिलाफ गलत धारणा बन सकती है। इसलिए वह कोर्ट में अपनी पूरी तैयारी के साथ जाना चाहती है।अब सरकार हो या हिंसाधारी सभी को अदालत के फैसले का इंतजार करना चाहिए व फैसले का आदर भी करना चाहिए ।

अशोक भाटिया, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक, समीक्षक एवं टिप्पणीकार

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