
अजय कुमार,लखनऊ
उत्तर प्रदेश में दलित राजनीति का मिजाज लगातार बदल रहा है। बसपा के चुनावी रण में कमजोर पड़ते ही सभी दलों ने बीएसपी के कोर दलित वोटरों को अपने पाले में लाने के लिये बिसात बिछाना शुरू कर दी है। यह सिलसिला 2017 से शुरू हुआ था और अब चरम पर नजर आ रहा है। इसी का परिणाम है कि अब किसी भी चुनाव में दलित वोटों में भी बिखराव देखने को मिलता है। स्थिति यह कि मौजूदा राजनीति में महात्मा गांधी तो अप्रासंगिक हो गये हैं जबकि बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर का ’सिक्का’ चल रहा है।कांगे्रस जिसने गांधी के नाम के सहारे कई चुनाव जीते अब उसे भी बाबा साहब में अपना भविष्य नजर आता है। कुछ वोट बैंक के सौदागरों द्वारा बाबा साहब को ऐसा महिमामंडित कर दिया गया है मानों पूरा संविधान उन्हीं ने तैयार किया था। वोट बैंक की खातिर देश के संविधान को बाबा साहब का संविधान कहकर प्रचारित प्रसारित किया जाता है,जबकि हकीकत में राजनैतिक दलों की यह सब कसरत दलित वोटों के लिये है।यूपी में भाजपा और समाजवादी पार्टी आजकल दलितों के नये रहनुमा बनने में लगे हैं। यह इस लिये है क्योंकि यूपी में 2027 के विधानसभा चुनाव की तैयारियां जोरों पर हैं, और समाजवादी पार्टी (सपा) ने दलित समुदाय को अपने पक्ष में करने के लिए एक व्यापक रणनीति अपनाई है। पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने श्पीडीएश् (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) गठबंधन को केंद्र में रखते हुए दलित नेताओं को पार्टी में शामिल किया है और विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से दलित मतदाताओं तक पहुँचने का प्रयास कर रहे हैं।
सपा ने 2022 के विधानसभा चुनावों में इंद्रजीत सरोज, त्रिभुवन दत्त, आर.के. चैधरी और राम प्रसाद चैधरी जैसे प्रमुख दलित नेताओं को पार्टी में शामिल किया था। अब इसमें नया नाम बसपा के पूर्व दलित नेता दद्दू प्रसाद का शामिल हो गया है। इन नेताओं को अब 2027 के चुनावों के लिए महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ सौंपी गई हैं, ताकि वे अपने समुदाय के वोटों को सपा के पक्ष में मोड़ सकें। इसके अतिरिक्त, फैजाबाद के सांसद अवधेश प्रसाद को दलित चेहरे के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है, जिन्हें अखिलेश यादव लगातार अपने साथ रख रहे हैं।
सपा ने श्पीडीए पर चर्चाश् नामक एक कार्यक्रम शुरू किया है, जिसका उद्देश्य पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक समुदायों को भाजपा सरकार द्वारा उनके अधिकारों पर किए जा रहे हमलों और संविधान के साथ हो रहे खिलवाड़ के बारे में जागरूक करना है। इस कार्यक्रम के तहत पार्टी कार्यकर्ता गांव-गांव जाकर पीडीए समुदाय के लोगों से संवाद कर रहे हैं और उन्हें सपा की नीतियों से अवगत करा रहे हैं। सपा ने दलित समुदाय के साथ अपनी एकजुटता दिखाने के लिए विभिन्न प्रतीकात्मक कदम उठाए हैं। लखनऊ में पार्टी कार्यालय के बाहर बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर, राम मनोहर लोहिया और हनुमान जी की तस्वीरों वाले होर्डिंग्स लगाए गए हैं, जिन पर हम दलितों के साथ हनुमान जी जैसे संदेश लिखे गए हैं। इसके अलावा, पार्टी ने अंबेडकर जयंती पर बड़े कार्यक्रम आयोजित करने की योजना बनाई है, ताकि दलित समुदाय के साथ अपनी प्रतिबद्धता को और मजबूत किया जा सके।
सपा ने 2024 के लोकसभा चुनावों में उम्मीदवार चयन में पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक समुदायों को प्राथमिकता दी थी। पार्टी ने 57 उम्मीदवारों में से 15 अनुसूचित जाति, 29 पिछड़े वर्ग और 4 मुस्लिम समुदाय से उम्मीदवार उतारे थे। इस संतुलन को 2027 के विधानसभा चुनावों में भी बनाए रखने की योजना है, ताकि पीडीए गठबंधन को और मजबूत किया जा सके।इसी क्रम में अखिलेश यादव भाजपा सरकार पर दलितों और आदिवासियों को निशाना बनाने का आरोप लगाते हैं।वह कहते हैं कि भाजपा सरकार पीडीए समुदाय के लोगों की नियुक्ति रोक रही है और उनके अधिकारों को छीन रही है। अखिलेश ने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा सरकार संविधान और आरक्षण के साथ खिलवाड़ कर रही है, और उन्होंने पीडीए समुदाय से भाजपा को सत्ता से बाहर करने का आह्वान किया है।
लब्बोलुआब यह है कि समाजवादी पार्टी ने 2027 के विधानसभा चुनावों के लिए दलित समुदाय को अपने पक्ष में करने के लिए एक व्यापक रणनीति अपनाई है। पार्टी ने दलित नेताओं को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी हैं, पीडीए पर चर्चा कार्यक्रम शुरू किया है, प्रतीकात्मक कदम उठाए हैं, उम्मीदवार चयन में संतुलन बनाए रखा है, और भाजपा पर तीखे आरोप लगाए हैं। 14 अप्रैल को बाबा साहब की 150 जयंती के समय भी समाजवादी पार्टी ने पूरे प्रदेश में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया। अखिलेश यादव ने लखन में बाबा साहब की मूर्ति पर पुष्प चढ़ाकर उनके नमन किया । अखिलेश के इन सभी प्रयासों का उद्देश्य दलित समुदाय के समर्थन को हासिल करना और 2027 के चुनावों में भाजपा को सत्ता से बाहर करना है।