संवेदनशीलता से प्रकृति के पुनर्जीवन की राह

The path to rejuvenation of nature through sensitivity

विजय गर्ग

पिछले पांच दशकों में वैश्विक आर्थिक प्रगति पांच गुना बढ़ी है, किंतु यहां तक पहुंचने के लिए 70 प्रतिशत से अधिक पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों का उनकी क्षमता से अधिक दोहन किया गया । इसका परिणाम यह कि पृथ्वी का अस्तित्व ही संकट में आ गया है।

बार-बार चेताने की आवश्यकता होती है कि इस ब्रह्मांड में अनेक गैलेक्सियां हैं, और हमारी गैलेक्सी में भी अरबों ग्रह हैं, किंतु उनमें केवल पृथ्वी ही ऐसी है, जहां जीवन संभव है। सौरमंडल में पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा ग्रह है, जहां सतह पर जल उपलब्ध है और जो जीवन के अस्तित्व में सहायक है। निकट भविष्य में पृथ्वी के अलावा हमारी कोई और शरणस्थली नहीं बनने वाली।

संभवत: इसी कारण साल 2022 के विश्व पर्यावरण दिवस के लिए, 5 जून 1974 के पहले पर्यावरण दिवस की थीम ‘ओनली वन अर्थ -केवल एक ही पृथ्वी’ को दोहराना जरूरी लगा। जहां 1974 में शायद ही यह कहा गया हो कि प्रकृति आपात स्थिति में है, वहीं 2022 तक ये चेतावनियां सर्वत्र सुनाई देने लगीं। मानवीय जरूरतों और लालच ने पृथ्वी को तीन मुख्य संकटों में जकड़ लिया है- जलवायु संकट, प्रकृति और जैव विविधता की हानि तथा प्रदूषण और अपशिष्ट का बढ़ता ढेर।

पिछले सौ वर्षों में आधे वेटलैंड और समुद्रों में आधे से अधिक मूंगे की चट्टानें नष्ट हो चुकी हैं। सागरों में इतना प्लास्टिक पहुंच रहा है कि 2050 तक वहां मछलियों से अधिक प्लास्टिक हो सकता है। पृथ्वी के प्रति संवेदना जगाने और इस बिगड़ते संतुलन को सुधारने के लिए ही 2021 के अर्थ डे की थीम थी- ‘अपनी पृथ्वी को फिर से ठीक करें’। अप्रैल 2022 की थीम ‘अपने ग्रह में निवेश करें’, अर्थ डे 2020 की ‘जलवायु पर सक्रियता’ और 2019 की थीम थी ‘अपनी प्रजातियों की रक्षा करें’।

साल 2021-2030 की अवधि को संयुक्त राष्ट्र ने ‘डिकेड ऑफ इकोसिस्टम रिस्टोरेशन’ यानी पारिस्थितिकी तंत्र पुनर्स्थापन दशक घोषित किया है। इसमें ताजे पानी, समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र और भूमि आधारित इकोसिस्टम को फिर से पहले जैसी स्थिति में लाने के प्रयास जारी हैं। इसमें भूमि उपयोग परिवर्तन की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इन सभी प्रयासों का निष्कर्ष था कि 5 जून, 2022 को एक बार फिर ‘केवल एक पृथ्वी’ के थीम पर लौटा जाए।

पृथ्वी और मानवता के लिए संकट का मुख्य कारण है- सतत उपभोग और सतत उत्पादन प्रणाली न होना। जनसंख्या वृद्धि के साथ यह समस्या बढ़ रही है। दूसरी ओर, जैव विविधता तेजी से घट रही है। अब तक 65 फीसदी वन्य जीव समाप्त हो चुके हैं। इसी कारण 2022 के विश्व पर्यावरण दिवस पर यह भी आह्वान किया गया था कि हम सतत और पर्यावरण-अनुकूल जीवनशैली अपनाएं और पृथ्वी के साथ समरसता में जिएं। इस समरसता का भाव जगाने के लिए आवश्यक है कि हम स्वयं को पृथ्वी के स्थान पर रखें और सोचें कि जो कुछ पृथ्वी और प्रकृति के साथ हो रहा है, यदि वही हमारे साथ हो रहा होता, तो हमें कैसा लगता?

संवेदनशील न्यायालय और न्यायिक संस्थाएं अब प्रकृति या उसके किसी हिस्से को वैधानिक रूप से जीवित मानव घोषित कर रही हैं और उनके अधिकारों की रक्षा के आदेश भी दे रही हैं। हालांकि सरकारें ऐसे आदेशों को समय के साथ निरस्त कराने में सफल हो जाती हैं। कई बार, पर्यावरण और पृथ्वी के हित में उठी आवाज़ों को विकास विरोधी कहकर कमजोर करने का प्रयास करती हैं। यह भी निर्विवाद है कि पृथ्वी की हानि कम करने के प्रयास भी हो रहे हैं। मसलन, यूरोप में बांध हटाए जा रहे हैं। साल 2021 में यूरोप के 17 देशों में 239 बांध हटाए गए।

22 मई, 2021 को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा था-‘हमने प्रकृति के विरुद्ध युद्ध छेड़ रखा है, जबकि हमें तो उसका रक्षक होना चाहिए था।’ प्रकृति हमें जीवन, अवसर, सेवाएं और समाधान देती है, किंतु हमने उसकी जैव विविधता को नष्ट किया और जलवायु संतुलन में बाधाएं डालीं। स्वस्थ पृथ्वी, संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अत्यावश्यक है। अन्यथा, स्थिति यह है कि 90 प्रतिशत जनसंख्या प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर है।

मानव के पृथ्वी पर पड़ते प्रभावों को लेकर चिंता पिछले पचास वर्षों से व्यक्त की जा रही है। वर्ष 1972 में स्टॉकहोम में आयोजित संयुक्त राष्ट्र का पहला पर्यावरण सम्मेलन ‘प्राकृतिक पर्यावरण’ पर नहीं, बल्कि ‘मानव पर्यावरण’ पर केंद्रित था। इसी सम्मेलन में तय किया गया कि हर वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाएगा। दो वर्षों बाद ‘केवल एक पृथ्वी है’ के नारे के साथ पहला पर्यावरण दिवस मनाया गया था।

आज जरूरत है कि सरकारें, समाज और प्रत्येक व्यक्ति आत्ममंथन करें कि पृथ्वी के हित और अहित में उन्होंने क्या किया है। यदि हम प्रकृति को खुद ही पुनर्जीवित होने में मदद करें, तो वह भी पृथ्वी की सेवा ही होगी। कोरोना काल के प्रारंभिक दिनों में मानवीय गतिविधियां ठप होने के कारण नदियां, आकाश और वन्यजीवन स्वत: ही स्वच्छ-सजीव हो उठे थे। विशेष परियोजनाएं नहीं चलाई गई थीं, बस मानवीय हस्तक्षेप कम हो गया था। पशु-पक्षी, मछलियां और अन्य जीव-जंतु उन मार्गों पर लौट आए थे जो हमने उनसे छीन लिए थे।

पृथ्वी तो हमारा साझा घर है। मानव को स्वयं से पूछना चाहिए कि उस पृथ्वी का क्या होगा जिसमें जैव विविधता ही नहीं बचेगी?
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब

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