मिशन शक्ति पंचम चरण: जब बेटियों ने खुद को पहचाना, आत्मबल ने पाया नया नाम

Mission Shakti Pancham Phase: When daughters recognized themselves, self-confidence found a new name

– नारी गरिमा, सुरक्षा और सशक्तिकरण को लेकर योगी सरकार की दिखी प्रतिबद्धता
– योगी सरकार की पहल पर लाखों बालिकाओं में जगा आत्मविश्वास, सुरक्षा और नेतृत्व की क्षमता
– बालिकाओं की शिक्षा, सुरक्षा और आत्मनिर्भरता को समर्पित रहा ‘मिशन शक्ति अभियान का पंचम चरण’

रक्षा-राजनीति नेटवर्क

लखनऊ : उत्तर प्रदेश की धरती पर जब बेटियों की आँखों में आत्मविश्वास चमकता है, जब वे डर की बजाय नेतृत्व को चुनती हैं, तब समझिए कि बदलाव की लहर चल पड़ी है। और इस बदलाव की आंधी का नाम है ‘मिशन शक्ति पंचम चरण।’

वर्ष 2024-25 में योगी सरकार द्वारा चलाए गए इस अभियान ने 1.34 लाख विद्यालयों में पढ़ने वाली लाखों बालिकाओं को केवल सुरक्षा का पाठ नहीं पढ़ाया, बल्कि उन्हें नेतृत्व, आत्मरक्षा और आत्मनिर्भरता की जीती-जागती मिसाल बना दिया। यह संभव हुआ योगी सरकार और बेसिक शिक्षा विभाग के समन्वित प्रयास से। दरअसल, उत्तर प्रदेश की योगी सरकार नारी गरिमा, सुरक्षा और सशक्तिकरण को लेकर अपने संकल्पों पर पूरी प्रतिबद्धता से कार्य कर रही है। इसी क्रम में वर्ष 2024-25 के दौरान मिशन शक्ति अभियान का पंचम चरण बालिकाओं की शिक्षा, सुरक्षा और आत्मनिर्भरता को समर्पित रहा। राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही इस पहल में बेसिक शिक्षा विभाग ने बेहद सशक्त भूमिका निभाई, जिससे प्रदेश के लाखों विद्यालयों की बालिकाओं को नया आत्मबल मिला। मिशन शक्ति का पंचम चरण योगी सरकार के उस विजन को धरातल पर उतारने का कार्य कर रहा है, जो महिलाओं को केवल संरक्षित नहीं बल्कि सशक्त और सक्षम बनाकर आत्मनिर्भर भारत के निर्माण की दिशा में मील का पत्थर सिद्ध हो रहा है। मिशन शक्ति का यह चरण केवल एक अभियान न होकर प्रदेश में नारी सशक्तिकरण के प्रति प्रतिबद्ध शासन के सतत प्रयासों का उदाहरण बन गया है तो बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा की गई ये पहलें बालिकाओं को शिक्षित कर उन्हें सशक्त, जागरूक और आत्मनिर्भर नागरिक भी बना रहा है।

कुछ ऐसा रहा सफर
मिशन शक्ति का पंचम चरण अक्टूबर 2024 से आरंभ हुआ, जिसमें राज्य के 1.34 लाख से अधिक विद्यालयों को जोड़ा गया। विद्यालयों में बाल सुरक्षा, ‘सेफ टच-अनसेफ टच’, घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न और हेल्पलाइन नंबरों के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए पोस्टर, रैलियां, संवाद कार्यक्रम और नुक्कड़ नाटक आयोजित किए गए।

सिर्फ भाषण नहीं, जमीनी अभ्यास भी कराया, ’10 लाख बालिकाओं को मिला आत्मरक्षा का प्रशिक्षण’
‘प्रोजेक्ट वीरांगना’ के तहत सिर्फ कागज़ी वादे नहीं किए गए, बालिकाओं को आत्मरक्षा की विधियाँ सिखाई गईं। स्कूलों में ‘सेल्फ डिफेंस क्लब’ बनाकर नियमित अभ्यास हुआ। ‘प्रोजेक्ट वीरांगना’ के तहत अक्टूबर 2024 से मार्च 2025 तक लगभग 10 लाख बालिकाओं को आत्मरक्षा का प्रशिक्षण दिया गया। विद्यालयों में सेल्फ डिफेंस क्लब स्थापित किए गए, जहां नियमित अभ्यास कराया गया। इसी क्रम में 80,000 छात्राओं को स्काउट-गाइड प्रशिक्षण प्रदान किया गया, जिससे उनका नेतृत्व विकास सुनिश्चित हो सका।

डिजिटल और वित्तीय दुनिया में रखा कदम
राज्य सरकार ने इस अभियान को महज़ सामाजिक नहीं, बल्कि डिजिटल और आर्थिक सशक्तिकरण से भी जोड़ा। बालिकाओं को मोबाइल, ऐप्स, बैंकिंग और इंटरनेट सुरक्षा की ट्रेनिंग दी गई। राज्य सरकार की मंशा के अनुरूप शिक्षा को जीवन कौशल से जोड़ते हुए बालिकाओं को डिजिटल और वित्तीय साक्षरता का प्रशिक्षण भी दिया गया। इसके लिए 45,415 सुगमकर्ताओं और 18,725 शिक्षिकाओं को प्रशिक्षित किया गया। इसके माध्यम से 10 लाख से अधिक बालिकाओं को इंटरनेट सुरक्षा, मोबाइल ऐप्स का सुरक्षित उपयोग, और बैंकिंग प्रणाली की समझ दी गई। 45,655 विद्यालयों की बालिकाओं को बैंकों का भ्रमण भी कराया गया, जिससे उन्हें वित्तीय लेन-देन की प्रक्रियाओं की वास्तविक जानकारी मिल सकी।

जब बच्चियाँ बनीं ‘पावर एंजल’, गाँव और स्कूल में लिया नेतृत्व
केजीबीवी की बालिकाएं कभी मंच से बोलने में डरती थी। लेकिन ‘मीना मंच’ की ‘पावर एंजिल’ बनने के बाद आज वह स्कूल की सबसे आत्मविश्वासी छात्राओं में से एक हैं। बालिकाओं में आत्मसम्मान और निर्णय लेने की क्षमता विकसित करने के लिए ‘मीना मंच’ और ‘सेल्फ एस्टीम’ कार्यक्रम के माध्यम से 6.06 लाख बालिकाओं और 20,891 अभिभावकों को जोड़ा गया। इन मंचों पर बालिकाओं को ‘पावर एंजल’ की भूमिका देकर उन्हें विद्यालय और समुदाय में नेतृत्व की जिम्मेदारी दी गई।

महिला स्वास्थ्य को दी प्राथमिकता
‘पहली की सहेली’ फिल्म के जरिए बालिकाओं को माहवारी स्वच्छता की जानकारी दी गई और 36,772 को सैनिटरी पैड। एक संवेदनशील और जरूरी पहल, जो पहले शर्म की बात मानी जाती थी। 1.25 लाख बालिकाओं को माहवारी स्वच्छता पर केंद्रित ‘पहली की सहेली’ फिल्म दिखाई गई और 36,772 बालिकाओं को नि:शुल्क सैनिटरी पैड वितरित किए गए। राज्यभर के 1295 विद्यालयों में कैरियर गाइडेंस मेले, मार्गदर्शन सत्र, मां-बेटी संवाद और मीना मेले आयोजित किए गए, जिनमें हजारों बालिकाओं और उनके अभिभावकों ने भाग लिया।

एक दिन की अधिकारी’ बना आत्मबल का पर्व
जब बलिया की संगीता ने बतौर डीएम एक दिन कार्यभार संभाला, तो उनके गाँव में जश्न मनाया गया। राज्यभर की बेटियाँ जब प्रशासनिक, पुलिस, शिक्षा विभाग की भूमिका में दिखीं, तो लोगों की सोच बदलती गई। राज्य सरकार की अभिनव पहल ‘एक दिन की अधिकारी’ कार्यक्रम के अंतर्गत 7500 बालिकाओं को जिला प्रशासन, पुलिस, शिक्षा विभाग जैसे विभिन्न सरकारी पदों की भूमिका निभाने का अवसर मिला। इससे उनमें आत्मविश्वास और नेतृत्व की भावना को बल मिला।

बेटियों ने रच दिया इतिहास, ‘गणतंत्र दिवस पर बेस्ट मार्च पास्ट’
कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय की 80 बालिकाओं की टीम ने गणतंत्र दिवस 2025 की परेड में बेस्ट मार्च पास्ट का पुरस्कार जीतकर इतिहास रच दिया। 15 दिन तक सुबह 9 से शाम 3 बजे तक चलने वाला प्रशिक्षण उनकी कड़ी मेहनत और समर्पण का प्रमाण है। परेड में पहली बार शामिल हुई और कठिन मेहनत और समर्पण से इतिहास रचते हुए बेस्ट मार्च पास्ट के लिए पहला स्थान प्राप्त किया।

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